
Ye Muqaddar Ki Baat Hai..
Two Line
कारवाँ-ए-ज़िंदगी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं , ये किया नहीं.. वो हुआ नहीं.. ये मिला नहीं.. वो रहा नहीं.. ...
मोहब्बत खा गयी इन जवान नस्लों को, मुरशद.. ये लड़के अब त्यौहारों पर भी ख़ुश नहीं रहते। ...
क्या रोग दे गयी है, ये नए मौसम की बारिश... मुझे याद आ रहे है... मुझे भूल जाने वाले ! ...
ज़िंदगी है चार दिन की... कुछ भी ना गिला कीजिये.. दवा.. ज़हर... जाम... इश्क़... जो मिले.. मज़ा लीजिये। ...
उठी ही नहीं निगाह फिर किसी और की तरफ... एक शख्स का दीदार मुझे... इतना पाबंद कर गया ! ...
तेरा हक़ नहीं बनता था दुःख देने का.. तुझे ही तो ज़िंदगी के है दुःख बताये थे ! ...
चलो अब जाने भी दो... क्या करोगे दास्ताँ सुनकर... ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं.. और बयां हमसे होगा नहीं। ...
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